गुप्त नवरात्रि आषाढ़
                                        
                                
                            आषाढ़ मास में आनेवाली इस नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी के बीच के काल को गुप्त नवरात्रि कहा गया है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार जिस तरह वर्ष में 4 बार नवरात्रियां आती हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के 9 रूपों की पूजा होती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है।
यह गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधनाएं, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कठिन साधना ना कर सकने वाले साधक मात्र मां दुर्गा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वल्लित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ कर पुण्यफ़ल प्राप्त कर सकते हैं।
मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि के दौरान अन्य नवरात्रि की तरह ही पूजन करना चाहिए। इन दिनों कई साधक महाविद्या के लिए मां काली, तारादेवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी माता, छिन्न माता, त्रिपुर भैरवी मां, द्युमावती माता, बगलामुखी, मातंगी और कमलादेवी का पूजन करते हैं।
इन दौरान 9 दिन के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिदिन सुबह-शाम मां दुर्गा की आराधना करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या-पूजन के साथ नवरात्रि व्रत का उद्यापन करना चाहिए। दुर्गा पूजा के इन दिनों में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा विशेष महत्व होता है। अनेक स्थानों पर पाण्डाल सजाकर देवी की प्रतिमा स्थापित कर देवी की पूजा-अर्चना की जाती है तो कहीं केवल घट स्थापन, अखण्ड ज्योत व जवारे रखकर मां भगवती की आराधना की जाती है। लेकिन गुप्त नवरात्रि में यह पूजन आराधना इतनी विस्तार से नहीं होती लेकिन इस नवरात्रि का महत्व भी अन्य नवरात्रि के समान ही है।
दुर्गा पूजा दुर्गा सप्तशती के बिना अधूरी है। इन नौ दिनों में दुर्गासप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है। कठिन साधना ना कर सकने वाले साधक मात्र मां दुर्गा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वल्लित कर दुर्गासप्तशती का पाठ कर पुण्यफ़ल प्राप्त कर सकते हैं किन्तु दुर्गासप्तशती का पाठ एक निश्चित विधि अनुसार ही किया जाना श्रेयस्कर है। आइए जानते हैं 'दुर्गासप्तशती' के पाठ की सही विधि -
- प्रोक्षण (अपने ऊपर नर्मदा जल का सिंचन करना)
 - आचमन
 - संकल्प
 - उत्कीलन
 - शापोद्धार
 - कवच
 - अर्गलास्त्रोत
 - कीलक
 - सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ (इसे विशेष विधि से भी किया जा सकता है)
 - मूर्ति रहस्य
 - सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
 - क्षमा प्रार्थना
 
विशेष विधि -
दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय को प्रथम चरित्र। 2,3,4 अध्याय को मध्यम चरित्र एवं 5 से लेकर 13 अध्याय को उत्तम चरित्र कहते हैं। जो साधक पूरे पाठ (13 अध्याय) एक दिन में नहीं कर सकते हैं वे निम्न क्रम से इसे करें-
- 1 दिन- प्रथम अध्याय
 - 2 दिन- 2 व 3 अध्याय
 - 3 दिन- 4 अध्याय
 - 4 दिन- 5,6,7,8 अध्याय
 - 5 दिन- 9 व 10 अध्याय
 - 6 दिन- 11 अध्याय
 - 7 दिन- 12 व 13 अध्याय
 - 8 दिन- मूर्ति रहस्य,हवन,बलि व क्षमा प्रार्थना
 - 9 दिन- कन्याभोज इत्यादि।