जहां सुमति, वहां संपत्ति – जहां कुमति, वहां विनाश
                                        
                                
                            एकता में बल: पक्षियों की पहली जीत
बहेलिए ने जब देखा कि एक झुंड के पक्षी एक साथ दाना चुगने आते हैं, तो उसने अपने अनुभव से चाल चली।
उसने एक पेड़ के नीचे जाल बिछाया और दाने डाल दिए।
भूख लगी थी, और सभी पक्षी मित्रता में एकसाथ नीचे उतर आए।
जैसे ही उन्होंने दाना चुगना शुरू किया, सब जाल में फंस गए।
लेकिन संकट में भी उन्होंने हार नहीं मानी।
आपस में सलाह की, और एकता से जाल को लेकर उड़ चले।
बहेलिया हतप्रभ रह गया।
पक्षियों ने जाल समेत उड़कर यह दिखा दिया कि जब मिलकर काम किया जाए, तो बड़े से बड़ा संकट भी छोटा पड़ जाता है।
बहेलिए की चतुराई: एकता टूटने का इंतज़ार
ऋषि ने जब यह दृश्य देखा तो मुस्कराए और बहेलिए को टोक दिया।
बोले – "यह दौड़ व्यर्थ है, वे तुम्हारे हाथ नहीं आने वाले।"
लेकिन बहेलिया अनुभवी था। उसने उत्तर दिया –
"ऋषिवर, अभी तो उनमें एकता है, पर ज़रा सी असहमति होते ही ये बिखर जाएंगे।"
"जिस दिन उनके विचारों में मतभेद होगा, उसी दिन मैं उन्हें पकड़ लूंगा।"
और वह फिर से पक्षियों के पीछे भाग पड़ा।
आसन्न संकट: एकता की दीवार में दरार
पक्षी उड़ते-उड़ते थकने लगे।
कुछ की राय थी कि और दूर तक उड़ें, तो कुछ आराम की बात करने लगे।
शुरुआत में संकट के कारण जो एकता थी, वह अब आराम की चाहत और व्यक्तिगत इच्छाओं में टूटने लगी।
"किधर उतरें?"
"कहाँ विश्राम करें?"
छोटी-छोटी बातों पर बहस बढ़ने लगी।
जो जितना थका था, उसकी दिशा उतनी अलग होती जा रही थी।
मतभेद ने संवाद को वाद-विवाद, फिर विवाद को कलह में बदल दिया।
विनाश की शुरुआत: कुमति का आगमन
धीरे-धीरे पक्षी अलग-अलग दिशा में उड़ने लगे।
जाल अब असंतुलित हो गया। कुछ पक्षियों के पंख उसमें उलझने लगे।
जाल नीचे गिरने लगा और अंततः सब पक्षी ज़मीन पर गिर पड़े।
उधर बहेलिया प्रसन्न होकर दौड़ता हुआ पहुंचा और एक-एक करके सभी पक्षियों को पकड़ लिया।
तुलसी का सत्य: सुमति और कुमति का प्रभाव
तुलसीदासजी ने इस सत्य को एक पंक्ति में बांध दिया है –
"जहां सुमति तहां संपत्ति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना।"
यानि जहां बुद्धिमानी और एकजुटता है, वहां सब कुछ है—समृद्धि, रक्षा, शांति।
और जहां मतभेद, स्वार्थ और मूर्खता है, वहां विनाश तय है।
महाभारत से मिली शिक्षा: मतभेद का मूल्य पूरा समाज चुकाता है
यह कथा महाभारत के उद्योग पर्व से ली गई है और यह गहराई से दिखाती है कि कैसे थोड़े से मतभेद भी समाज के पतन का कारण बन सकते हैं।
शुरुआत में संकट की घड़ी में जो पक्षी एकमत थे, वही जब कुछ राहत महसूस करने लगे, तो निजी इच्छाएं हावी हो गईं।
संकट के बीच मिला हुआ संकल्प, सुरक्षा के समय कमजोर पड़ गया।
सीख: संकट से निकलने के बाद भी एकता बनाए रखें
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एकता केवल आपदा में नहीं, उसके बाद भी बनाए रखनी चाहिए।
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जब तक एकजुटता थी, वे पक्षी जाल समेत उड़ रहे थे।
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लेकिन जैसे ही मन भटका, मार्ग बंटा, परिणाम घातक हो गया।
 
निष्कर्ष
यह कथा केवल पक्षियों की नहीं है, यह हमारे समाज, परिवार, संगठन, और राष्ट्र की भी कहानी है।
जब तक हम सामूहिक सोच और आपसी सहमति में आगे बढ़ते हैं, हम जाल से भी ऊपर उड़ सकते हैं।
पर जैसे ही हम व्यक्तिगत स्वार्थ, थकान, और अहंकार को जगह देते हैं, वहीं से हमारा पतन शुरू हो जाता है।
एकता हमारा सबसे बड़ा बल है – उसी में कल्याण है, उसी में भविष्य है।