महादेव ने पार्वती को दिया अमरत्व का ज्ञान, पर सुना तोते ने — परीक्षित को भागवत सुनाने वाले शुकदेव की अद्भुत कथा

महादेव ने पार्वती को दिया अमरत्व का ज्ञान, पर सुना तोते ने — परीक्षित को भागवत सुनाने वाले शुकदेव की अद्भुत कथा

भागवत पुराण में राजा परीक्षित को अमृत समान कथा सुनाने वाले शुकदेव जी कौन थे और उन्हें यह दिव्य ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ — इसके पीछे एक अत्यंत रहस्यमयी और प्रेरक कथा छिपी है।

अमरत्व के ज्ञान की कथा

एक बार माता पार्वती ने भगवान महादेव से अनुरोध किया —
“प्रभु, मुझे ऐसा गूढ़ ज्ञान दीजिए जिसे संसार का कोई भी जीव प्राप्त न कर सके — वह ज्ञान जो अमरत्व का रहस्य हो।”

देवी की इच्छा पूर्ण करने के लिए महादेव उन्हें लेकर एक निर्जन गुफा में गए। उन्होंने गुफा का द्वार बंद किया ताकि कोई बाहरी व्यक्ति इस रहस्य को न सुन सके।
तब उन्होंने अमरत्व का दिव्य ज्ञान सुनाना प्रारंभ किया।

शुरुआत में पार्वती जी मनोयोग से कथा सुनती रहीं और बीच-बीच में “हाँ प्रभु” कहकर हुंकार भरती रहीं।
लेकिन कुछ समय बाद उन्हें नींद आ गई।

पार्वती की जगह तोते ने सुनी कथा

गुफा की छत पर एक तोते (शुक) का घोंसला था। उस घोंसले में एक अंडा फूटकर एक तोते के बच्चे का जन्म हुआ था।
वह तोता भी शिव जी की वाणी में लीन होकर कथा सुन रहा था।

जब उसने देखा कि माता पार्वती सो गई हैं, तो उसने कथा के प्रवाह को न टूटने देने के लिए उनकी जगह “हुंह” करके हुंकारी भरना शुरू कर दिया।
महादेव कथा सुनाते रहे, लेकिन शीघ्र ही उन्हें ज्ञात हो गया कि पार्वती के स्थान पर कोई और उत्तर दे रहा है।

क्रोधित होकर वे उठे और तोते को मारने के लिए तत्पर हुए।

तोते का व्यास ऋषि के घर में प्रवेश

तोता भयभीत होकर गुफा से उड़ गया और महर्षि व्यास के आश्रम में जा पहुँचा।
उसी समय व्यास जी की पत्नी ने जम्हाई ली, और सूक्ष्म रूप धारण करके वह तोता उनके मुख में प्रवेश कर गया।

जब महादेव वहाँ पहुँचे और देखा कि वह तोता अब व्यास की पत्नी के गर्भ में है, तो उन्होंने उसे मारने का विचार त्याग दिया।
इस प्रकार वही तोता व्यास जी के पुत्र के रूप में गर्भ में स्थित हुआ — यही आगे चलकर शुकदेव कहलाए।

गर्भ में ही प्राप्त हुआ वेद और भागवत का ज्ञान

शुकदेव जी गर्भ में रहते हुए ही वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराणों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर चुके थे।
बारह वर्षों तक वे गर्भ से बाहर नहीं निकले क्योंकि उन्हें संसार की माया का भय था।

जब व्यास जी ने उन्हें बाहर आने को कहा, तो उन्होंने कहा —
“हे पिता, यह संसार मोह-माया का बंधन है। मैं उसमें क्यों प्रवेश करूँ?”

उनकी माता गर्भ के कष्ट से अत्यंत व्याकुल हो गईं। तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं वहाँ प्रकट हुए और शुकदेव को आश्वासन दिया —
“बाहर आओ, तुम्हें संसार की माया स्पर्श नहीं करेगी।”

श्रीकृष्ण के वचन सुनकर शुकदेव बाहर आए, माता-पिता को प्रणाम किया और तुरंत वन की ओर तपस्या के लिए चले गए।

शुकदेव को भागवत ज्ञान कैसे मिला

महर्षि व्यास चाहते थे कि शुकदेव श्रीमद्भागवत का गूढ़ ज्ञान प्राप्त करें, पर शुकदेव किसी भी प्रकार से सांसारिक संबंधों में नहीं बंधना चाहते थे।
व्यास जी ने एक युक्ति सोची। उन्होंने श्रीकृष्ण लीला का एक मधुर श्लोक बनाया और उसके आधे भाग को अपने शिष्यों से गुनगुनाने को कहा, जहाँ शुकदेव का ध्यान लगा रहता था।

जब शुकदेव ने वह मधुर श्लोक सुना, तो वे श्रीकृष्ण लीला के आकर्षण में खिंचकर अपने पिता के आश्रम में लौट आए।
वहाँ व्यास जी ने उन्हें श्रीमद्भागवत पुराण के अठारह हज़ार श्लोकों का ज्ञान दिया।

परीक्षित को भागवत सुनाने का कारण

बाद में जब राजा परीक्षित को मृत्यु का श्राप मिला, तब उन्होंने सात दिन तक शुकदेव जी से भागवत कथा सुनी।
उसी ज्ञान के प्रभाव से उन्होंने मृत्यु के भय पर विजय पाई और परम मुक्त अवस्था प्राप्त की।

निष्कर्ष

शुकदेव की यह कथा केवल ज्ञान का प्रसंग नहीं, बल्कि यह बताती है कि सच्चा ज्ञान शरीर से नहीं, आत्मा से प्राप्त होता है।
एक तोते के रूप में भी जिसने श्रवण और श्रद्धा से ईश्वर की वाणी सुनी, वही आगे चलकर भगवत् कथा का अमर प्रवक्ता बना।

अतः यह कथा हमें सिखाती है कि जब मन श्रद्धा से भरा हो, तब जन्म या रूप की कोई सीमा ज्ञान और भक्ति के मार्ग में बाधा नहीं बनती।